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बालां सत्स्रेक-चञ्चलां मधु-मदां रक्तां जटा-जूटिनीम् ।। शत्रु-स्तम्भन-कारिणीं शशि-मुखीं पीताम्बरोद् भासिनीम् ।

ॐ ह्रीं क्लीं क्लीं चमुण्डायै विच्चे। ज्वालामालिनी आद्यायै नमः॥

श्री – सिंहासन – मौलि-पातित-रिपुं प्रेतासनाध्यासिनीम् ।।

जीवहारं केलया, बुद्धिं विनाशाय हरिं अम स्वाहा”

विलयानल-सङ्काशां , वीरां वेद-समन्विताम् । विराण्मयीं महा-देवीं, स्तम्भनार्थे भजाम्यहम् ।।

हेम-कुण्डल-भूषां च, पीत-चन्द्रार्ध-शेखराम् । पीत-भूषण-भूषाढ्यां, स्वर्ण-सिंहासने स्थिताम् ।।

योषिदाकर्षणे शक्तां, फुल्ल-चम्पक-सन्निभाम् ।

पीतं वासो वसानां वसु – पद – मुकुटोत्तंस- हाराङ्गदाढ्याम् ।।



महादेव और पार्वती ने ही मनुष्यों के दुख निवारण हेतु शाबर मंत्रों की रचना की। शाबर ऋषि व नव नाथों ने भी कलियुग में मनुष्यों के दुखों को देखते हुए की व सहज संस्कृत ना पढ़ पाने के कारण भी है, आँख की पीड़ा-अखयाई ,कांख की पीड़ा -कखयाइ, पीलिया, नेहरूआ, ढोहरूआ, आधासीसी ,नज़र भूत प्रेत बाधा से मुक्ती हेतु ही की थी जिससे उपचार में विशेष सहायता प्राप्त हुई और रोगी का ततछण आराम मिल जाता है। आज भी झाड़ा more info लगवाने कुछेक असाध्य रोगों के विशेष प्रभाव शाली है,

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पीतासनां शव-गतां, घोर-हस्तां स्मिताननाम् । गदारि-रसनां हस्तां, मुद्गरायुध-धारिणीम् ।।

ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा ।

These mantras were normally recited with deep faith and devotion, believing which they had the power to convey beneficial adjustments in everyday life.

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